पथरिया/मुंगेली, 5 अगस्त 2025 — छत्तीसगढ़ सरकार की “समाधान शिविर (सुशासन तिहार)” योजना के तहत जनपद पंचायत पथरिया में ₹16.09 लाख के फर्जी भुगतान का मामला सामने आया है। बिना पंचायतों की जानकारी और सहमति के यह राशि निजी फर्मों को ट्रांसफर कर दी गई। मामले में फिलहाल केवल संविदा कंप्यूटर ऑपरेटर अनिल अमादा की सेवा समाप्त की गई है, लेकिन पंचायत प्रतिनिधियों और शिकायतकर्ता इसे “दिखावटी कार्रवाई” बता रहे हैं।
क्या है मामला? पथरिया जनपद की 64 ग्राम पंचायतों के नाम पर बिना किसी आदेश या सप्लाई के विभिन्न निजी फर्मों को लाखों रुपये का भुगतान कर दिया गया। सभी बिल एक जैसे टेम्पलेट में तैयार किए गए और पंचायत प्रतिनिधियों के डिजिटल सिग्नेचर का दुरुपयोग किया गया। जिन फर्मों को भुगतान किया गया है, उनके नाम और काम को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है, न ही सप्लाई का कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध है।
प्रमुख अनियमितताएं: पंचायतों की जानकारी व सहमति के बिना भुगतान, डिजिटल सिग्नेचर का दुरुपयोग, सप्लाई का कोई प्रमाण नहीं, सभी बिल एक जैसे टेम्पलेट में, फर्मों के विवरण अस्पष्ट।
भुगतान प्राप्त फर्में:
फर्म का नाम भुगतान राशि (₹)
श्रीराम बोरवेल्स ₹9,71,500
गौरव ट्रेडर्स ₹3,61,000
खुशी कम्प्यूटर सेंटर ₹1,76,800
राजा ट्रेडर्स, पथरिया ₹75,000
पटेल रिवाइंडिंग सेंटर ₹25,400
> अब तक इन फर्मों पर क्या कार्रवाई हुई है? रिकवरी या FIR जैसी कोई ठोस कानूनी कार्रवाई की पुष्टि नहीं हुई है।
प्रभावित पंचायतें: इस फर्जीवाड़े से अमलडीहा, बछेरा, बेलखुरी, करही, रामबोड़, सिलतरा, उमरिया सहित कुल 64 पंचायतें प्रभावित बताई जा रही हैं।
शिकायतकर्ता दीपक साहू का आरोप: वार्ड पार्षद दीपक साहू ने इसे लोकतंत्र और पंचायत स्वायत्तता का “सीधा अपमान” बताया। उन्होंने कहा:
“एक कंप्यूटर ऑपरेटर पर कार्रवाई कर देना पर्याप्त नहीं है। यह षड्यंत्र उच्च अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं था।”
साहू ने चेताया कि यदि निष्पक्ष जांच नहीं हुई, तो वे कलेक्टर को दोबारा आवेदन देंगे और आवश्यकता पड़ी तो न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे।
पंचायत प्रतिनिधियों का बयान (नाम न छापने की शर्त पर): कई पंचायत कर्मचारियों ने बताया कि:
“विकास कार्यों की फाइलें जनपद में अटकाई जाती हैं। जो राशि पंचायतों को स्वायत्त रूप से खर्च करनी होती है, उसके लिए भी चेक-बिल पास कराने बार-बार जनपद के चक्कर लगाने पड़ते हैं।”
यह व्यवस्था पंचायतों की वित्तीय स्वायत्तता पर सीधा हमला है।
जिला पंचायत CEO का पक्ष: CEO प्रभाकर पांडे ने बताया:
“विशेष जांच दल द्वारा रिपोर्ट तैयार की जा चुकी है। संबंधित व्यक्तियों को नोटिस जारी किए गए हैं। जवाब मिलने के बाद विधिसम्मत कार्रवाई की जाएगी।”
डर और दबाव का माहौल: कई सरपंचों और प्रतिनिधियों ने बताया कि डर और दबाव के कारण वे खुलकर सामने नहीं आ पा रहे हैं। उनका कहना है कि बड़े अधिकारियों के निर्देश पर उन्होंने जनपद में अपने डिजिटल सिग्नेचर जमा किए थे।
“समाधान शिविर”, जो शासन की पारदर्शिता और जनसेवा का प्रतीक मानी जा रही थी, अब सवालों के घेरे में है। वर्षों से चल रही अफसरशाही, फाइल-राज और चेक पास नीति ने ग्राम पंचायतों को बंधक बना दिया है। अब यह देखना बाकी है कि क्या प्रशासन वाकई दोषियों पर ठोस कार्रवाई करता है या यह भी एक “दिखावटी कार्रवाई” बनकर रह जाएगा।
