पत्रकारिता पर सर्टिफिकेट की राजनीति का साया

आज भारत के मीडिया जगत में एक विचित्र बहस चल रही है — क्या पत्रकारिता करने के लिए पत्रकारिता की डिग्री होना अनिवार्य है?
यह सवाल इसलिए चर्चा में है क्योंकि आजकल कुछ पत्रकार और मीडिया से जुड़े लोग दूसरे पत्रकारों की डिग्री पर सवाल उठाकर खुद को “सच्चा पत्रकार” साबित करने में लगे हुए हैं। मगर असली सवाल यह है कि — क्या पत्रकारिता की डिग्री सच्चाई और जनता की आवाज़ से बड़ी हो सकती है?



पत्रकारिता — डिग्री नहीं, जिम्मेदारी का पेशा

पत्रकारिता कोई महज नौकरी नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है। यह समाज की आँख और जनता की आवाज़ है।
भारत के इतिहास में ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने बिना किसी पत्रकारिता की डिग्री के, अपने लेखन और साहस से व्यवस्था को हिला दिया।
प्रभाष जोशी, कुलदीप नैयर, और रघु राय जैसे पत्रकारों ने दिखाया कि पत्रकारिता की सच्ची ताकत ईमानदारी और जनसेवा के जज़्बे में होती है, न कि किसी संस्थान के प्रमाणपत्र में।

क्या डिग्री ही पत्रकार की पहचान है?

पत्रकारिता की शिक्षा जरूरी है, लेकिन इसे पात्रता का पैमाना बनाना लोकतंत्र की भावना के विपरीत है।
संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है।
इसलिए कोई भी नागरिक, यदि समाज की सच्चाई को सामने लाने का साहस रखता है, तो वह पत्रकार है — चाहे उसके पास डिग्री हो या न हो।


कॉरपोरेट मीडिया और डिग्रीधारी पत्रकारों का दोगलापन

आज स्थिति यह है कि कॉरपोरेट मीडिया हाउसों में बैठे डिग्रीधारी पत्रकार अपने चैनलों को “जनता की आवाज़” नहीं, बल्कि कॉरपोरेट और सत्ता के प्रवक्ता बना चुके हैं।
महँगी सैलरी और विज्ञापन के दबाव में काम करने वाले ये पत्रकार जनता के मुद्दों पर चुप हैं।
वे किसानों की समस्या, बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार और अन्याय जैसे सवालों से मुँह मोड़कर सत्ता और कॉरपोरेट जगत के गुणगान में जुटे हैं।

विडंबना यह है कि यही लोग आज स्वतंत्र डिजिटल पत्रकारों — जो बिना किसी समर्थन के जनता की सच्चाई सामने लाते हैं — उन पर सवाल उठा रहे हैं।
वे सोशल मीडिया पर सक्रिय, जमीनी स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों को “डिग्री रहित” बताकर नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन असलियत यह है कि स्वतंत्र मीडिया और डिजिटल पत्रकार ही आज लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को ज़िंदा रखे हुए हैं।


जब पत्रकार पत्रकारों पर सवाल उठाने लगे

पत्रकारिता का असली संकट अब बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से है।
जब पत्रकार एक-दूसरे की डिग्री, भाषा या पहचान पर सवाल उठाने लगते हैं, तो यह मीडिया की नैतिक गिरावट का संकेत है।
पत्रकार का मूल्यांकन उसके कार्य, साहस और सत्यनिष्ठा से होना चाहिए, न कि उसके डिप्लोमा या सर्टिफिकेट से।

अनुभव और जनपक्षधरता ही असली योग्यता

पत्रकारिता की असली पहचान अनुभव, संवेदनशीलता और जनता के प्रति प्रतिबद्धता में है।
गांव के किसी छोटे रिपोर्टर की कलम जब भ्रष्टाचार उजागर करती है, या किसी स्थानीय पत्रकार का वीडियो प्रशासन को हिला देता है — तो वह पत्रकारिता का सबसे बड़ा प्रमाणपत्र है।


पत्रकारिता का अर्थ “डिग्री” नहीं, “जिम्मेदारी” है।
आज जरूरत है कि मीडिया अपने भीतर झांके —
कॉरपोरेट दबाव और सत्ता के डर से बाहर निकलकर फिर से जनता की आवाज़ बने।
दूसरों की डिग्री पर सवाल उठाने की बजाय, खुद से पूछे — क्या हम अब भी सच्चाई के साथ हैं?

क्योंकि पत्रकार वही नहीं जो सर्टिफिकेट दिखाए,
बल्कि वही जो सत्ता के आगे झुके नहीं, और जनता के लिए सच्चाई लिखे।

आज जब कॉरपोरेट मीडिया सत्ता का भोंपू बन चुका है, तब स्वतंत्र डिजिटल पत्रकार ही असली लोकतांत्रिक प्रहरी हैं।
वे बिना डिग्री के भी वह कर रहे हैं जो डिग्रीधारी पत्रकार नहीं कर पा रहे — जनता की सच्चाई लिखना।

नवा बिहान छत्तीसगढ़ 24

Nawabihan
Author: Nawabihan

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