मुंगेली, पथरिया।
छत्तीसगढ़ सरकार की बहुचर्चित “समाधान शिविर” योजना के अंतर्गत जनपद पंचायत पथरिया में एक बड़ा वित्तीय घोटाला सामने आया है। इस घोटाले में लगभग ₹16.09 लाख की राशि 64 ग्राम पंचायतों की जानकारी और स्वीकृति के बिना ही विभिन्न निजी फर्मों को ट्रांसफर कर दी गई। इससे पंचायतों की वित्तीय स्वायत्तता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
क्या है पूरा मामला?
“सुशासन तिहार” योजना के अंतर्गत जनपद पंचायत पथरिया की विभिन्न ग्राम पंचायतों के नाम पर सामग्रियों की आपूर्ति दिखाकर भुगतान किया गया, जबकि न तो पंचायतों ने ऐसी कोई मांग की थी, न ही उन्हें कोई सामग्री प्राप्त हुई। जांच में यह भी सामने आया कि इन सभी भुगतानों में सरपंचों और सचिवों के डिजिटल सिग्नेचर का उपयोग बिना उनकी सहमति के किया गया, जो पहले से जनपद कार्यालय में जमा थे।
जिन फर्मों को भुगतान किया गया, उनमें प्रमुख नाम शामिल हैं:
श्रीराम बोरवेल्स – ₹9,71,500
गौरव ट्रेडर्स – ₹3,61,000
खुशी कम्प्यूटर सेंटर – ₹1,76,800
राजा ट्रेडर्स, पथरिया – ₹75,000
पटेल रिवाइंडिंग सेंटर – ₹25,400
इन सभी भुगतानों में एक समान टेम्पलेट वाले बिलों का उपयोग किया गया, जिनमें सामग्री सप्लाई का कोई प्रमाण नहीं है। यह बात स्पष्ट रूप से घोटाले की पूर्व-नियोजित योजना की ओर संकेत करती है।
प्रभावित पंचायतें
इस घोटाले से अमलडीहा, बछेरा, बेलखुरी, करही, रामबोड़, सिलतरा, उमरिया सहित कुल 64 ग्राम पंचायतें प्रभावित हुई हैं। कई सरपंचों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वे डर और दबाव के कारण खुलकर कुछ नहीं कह पा रहे हैं। उनका कहना है कि यह सीधे पंचायत स्वशासन के अधिकारों का उल्लंघन है।
जनदर्शन में शिकायत, जिला पंचायत CEO की प्रतिक्रिया
पार्षद दीपक साहू ने इस मामले को लेकर जनदर्शन में शिकायत दर्ज कराई थी और इसे “लोकतांत्रिक व्यवस्था का अपमान” करार दिया था, उन्होंने मांग की कि इस घोटाले में शामिल सभी जिम्मेदार अधिकारियों और फर्मों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
इस संबंध में जिला पंचायत के CEO प्रभाकर पांडे ने अपनी प्रतिक्रिया में बताया कि—
> “एक विशेष जांच टीम गठित कर जांच करवाई गई थी। रिपोर्ट मिलने के बाद संबंधित लोगों को नोटिस जारी कर दिए गए हैं। उनके जवाब के आधार पर आगे विधिसम्मत कार्रवाई की जाएगी।”
बड़ा सवाल — समाधान शिविर और बोरवेल का क्या संबंध?
घोटाले की पड़ताल के दौरान यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि जब “समाधान शिविर” जैसी योजना का उद्देश्य नागरिकों की समस्याओं का समाधान है, तो उसमें बोरवेल या सामग्री आपूर्ति जैसी गतिविधियां कैसे और क्यों जोड़ी गईं? इससे स्पष्ट होता है कि योजना के नाम पर वित्तीय अनियमितताओं को अंजाम दिया गया।
सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से चलाई गई “समाधान शिविर” योजना में इस तरह का घोटाला सामने आना पंचायत तंत्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है। अब सबकी नजर इस पर है कि जांच के बाद दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होती है या यह मामला भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाता है।
