रायपुर। छत्तीसगढ़ शासन की युक्तियुक्तकरण नीति का असर अब अबुझमाड़ जैसे दुर्गम और आदिवासी क्षेत्रों में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। नारायणपुर जिले के नारायणपुर और ओरछा विकासखंड के सुदूर और पहुँचविहीन गांवों में वर्षों से शिक्षकविहीन चल रहे स्कूलों में अब शिक्षकों की नियुक्ति हो चुकी है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता और बच्चों की उपस्थिति में उल्लेखनीय सुधार आया है।
132 शिक्षकों का हुआ युक्तियुक्तकरण, संतुलन की ओर बढ़ी शिक्षा व्यवस्था
जिला शिक्षा अधिकारी रमेश कुमार निषाद ने जानकारी दी कि जिले में कुल 132 शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण किया गया है। इनमें 1 व्याख्याता, 49 शिक्षक, 10 प्रधानपाठक और 72 सहायक शिक्षक शामिल हैं। जिले की 14 प्राथमिक शालाएं जो पहले पूरी तरह शिक्षकविहीन थीं, अब उनमें शिक्षक पदस्थ कर दिए गए हैं। साथ ही 108 एकल शिक्षक प्राथमिक शालाएं और 5 माध्यमिक शालाएं भी इस प्रक्रिया से लाभान्वित हुई हैं।
दुर्गम क्षेत्रों को मिली शैक्षणिक मजबूती
ग्राम जड्डा, धोबिनपारा, ईकरभट्टी, मोहनार, कस्तुरमेटा, गट्टाकाल, हिरंगई, नेलांगुर, ताड़ोबेडा, पुसालामा और पदमेटा जैसे गाँवों के स्कूलों में अब नियमित शिक्षकों की उपस्थिति से बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है। इसके अलावा जबगुंडा, थुलथुली, रेकावाया, लंका, काकवाड़ा, पुंगारपाल और हितवाड़ा जैसे उच्च प्राथमिक विद्यालयों में भी शिक्षकों की नियुक्ति की गई है, जिससे शैक्षणिक गतिविधियों को नया संबल मिला है।
शिक्षकों पर से घटा अतिरिक्त भार, पालकों में संतोष
पूर्व में शिक्षकविहीन विद्यालयों को संभालने के लिए अन्य विद्यालयों के शिक्षकों पर अतिरिक्त भार पड़ता था, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती थी। अब नई पदस्थापनाओं से न केवल शिक्षकों को राहत मिली है, बल्कि पालकों में भी बच्चों की शिक्षा को लेकर संतोष और भरोसे का वातावरण बना है।
सुदृढ़ हो रही शिक्षा व्यवस्था
युक्तियुक्तकरण नीति ने यह सिद्ध कर दिया है कि दूरदर्शिता और प्रतिबद्धता के साथ क्रियान्वयन हो, तो अबुझमाड़ जैसे अत्यंत दुर्गम क्षेत्रों में भी शिक्षा की मजबूत नींव रखी जा सकती है। नारायणपुर जिले का यह उदाहरण राज्य के अन्य कठिन क्षेत्रों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है।