रायपुर।
सोशल मीडिया पर अधिवक्ता अनिल मिश्रा के विवादित बयानों को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है।पत्रकार और सामाजिक चिंतक धनंजय बरमाल ने अपने फेसबुक वॉल पर एक तीखी टिप्पणी करते हुए अनिल मिश्रा की वकालत की डिग्री की जांच की मांग की है।
धनंजय बरमाल ने लिखा है —

“खुद को अधिवक्ता कहने वाले अनिल मिश्रा के ज्ञान और विचार देखकर नहीं लगता कि उन्होंने वकालत की डिग्री पढ़ाई से हासिल की है। हाल के दिनों में उनके सभी बयान जातीय वैमनस्य फैलाने वाले रहे हैं।”
बरमाल ने अपने पोस्ट में कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर अनिल मिश्रा द्वारा संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर को ‘अंग्रेजों का दलाल’ और ‘झूठा’ कहना बेहद निंदनीय है। उन्होंने लिखा कि यह बयान न केवल संविधान विरोधी है, बल्कि एससी-एसटी वर्ग के सम्मान पर सीधा प्रहार भी है।
पोस्ट में बरमाल ने कानूनी धाराओं का उल्लेख करते हुए लिखा है कि—
“अगर अनिल मिश्रा वाकई वकालत की पढ़ाई किए हैं, तो उन्हें पता होना चाहिए कि उनके ऐसे वक्तव्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आते हैं। साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 153A, 295A, और 505(2) भी ऐसे वक्तव्यों पर लागू होती हैं।”

धनंजय बरमाल ने अपनी पोस्ट में यह भी लिखा कि उन्हें पूर्ण विश्वास है कि अनिल मिश्रा की डिग्री संदिग्ध हो सकती है, और यह किसी “जुगाड़ तंत्र” के माध्यम से प्राप्त की गई है। उन्होंने मिश्रा को नसीहत देते हुए कहा—
“देश संविधान से चलता है, मनुस्मृति से नहीं। भारतीय संविधान और देश के महापुरुषों का सम्मान करना ही हर नागरिक का कर्तव्य है।”
बरमाल की इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर चर्चा तेज हो गई है। कई सामाजिक संगठनों ने इस बयान को दलित समाज का अपमान बताया है और सरकार से मांग की है कि अनिल मिश्रा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।
#Shame_on_you_Anil_Mishra
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