गुरु तेग बहादुर साहिब शहादत यात्रा, पथरिया नगर वासियों ने किया गुरु को नमन


पथरिया, 05 अक्टूबर 2025 — सिख धर्म के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर साहिब जी की 350वीं शहीदी शताब्दी के पावन अवसर पर छत्तीसगढ़ सिख संगठन द्वारा निकाली गई शहादत यात्रा का आज पथरिया नगर में भव्य स्वागत किया गया। इस दौरान नगरवासियों, सिख समाज और अन्य समुदायों के लोगों ने सड़कों पर पुष्पवर्षा कर और शबद कीर्तन के साथ गुरु साहिब के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा व्यक्त की।



नगर में पहले से निर्धारित दो स्थानों पर पंच प्यारों और यात्रा का आत्मीय स्वागत किया गया। नगर के प्रमुख व्यापारी गुरमीत सिंह बग्गा सहित विभिन्न समाजों के लोगों ने यात्रा में शामिल होकर गुरु साहिब जी के बलिदान को नमन किया। समाज द्वारा नगर पंचायत कार्यालय के सामने गुरु ग्रंथ साहिब जी की हजूरी में शबद कीर्तन का आयोजन किया गया, जहां श्रद्धालुओं ने गुरु जी के त्याग, मानवता और देशभक्ति के संदेश को सुना।



पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष जसपाल सिंह छाबड़ा ने श्रद्धालुओं और सहयोगियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान केवल सिख समाज के लिए नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए एक प्रेरणा है।

यात्रा के संयोजक और पूर्व अल्पसंख्यक आयोग अध्यक्ष महेंद्र सिंह छाबड़ा ने बताया कि इस शहादत यात्रा का उद्देश्य गुरु तेग बहादुर जी के अमर बलिदान और उनके आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाना है। यह यात्रा पूरे छत्तीसगढ़ में भ्रमण कर लोगों को उनके संदेशों से अवगत करा रही है।

गुरु तेग बहादुर जी (Guru Tegh Bahadur Ji) सिखों के नौवें गुरु थे। उनका जीवन धर्म, मानवीय मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए अद्वितीय त्याग और बलिदान की गाथा है, जिसके कारण उन्हें ‘हिंद की चादर’ (भारत की ढाल) भी कहा जाता है।
1. जीवन परिचय (Life Introduction)
* जन्म: 1 अप्रैल, 1621 ईस्वी को अमृतसर, पंजाब में।
* माता-पिता: उनके पिता सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब थे, और माता का नाम नानकी था।
* बचपन का नाम: उनका बचपन का नाम त्याग मल था।
* तेग बहादुर नाम: मात्र 14 वर्ष की आयु में मुगलों के खिलाफ युद्ध में उन्होंने जो वीरता दिखाई, उससे प्रभावित होकर उनके पिता गुरु हरगोबिंद ने उनका नाम ‘तेग बहादुर’ रखा, जिसका अर्थ है ‘तलवार का धनी’।
* गुरु पद: अपने पोते और सिखों के आठवें गुरु, गुरु हरिकृष्ण राय जी की अकाल मृत्यु के बाद, उन्हें 1665 ईस्वी में नौवां गुरु बनाया गया।
* योगदान: उन्होंने आनंदपुर साहिब नगर की स्थापना की। उन्होंने धर्म के प्रचार के लिए भारत के कई हिस्सों की यात्रा की और लोगों को अंधविश्वासों से दूर रहने और एक-दूसरे के प्रति परोपकारी दृष्टिकोण रखने की शिक्षा दी। उनके 115 भजन सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं।
* साधना: उन्होंने लगभग 20 वर्षों तक एकांत में साधना और चिंतन किया।
2. बलिदान और शहादत (Sacrifice and Martyrdom)
गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है।
* शहादत का कारण: यह मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल की बात है, जब वह हिंदुओं को जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर कर रहा था। कश्मीर के पंडितों का एक समूह अपनी रक्षा के लिए गुरु जी के पास आया।
* अद्वितीय फैसला: गुरु तेग बहादुर जी ने उनकी मदद करने का फैसला किया। उन्होंने पंडितों से कहा कि वे औरंगजेब को बता दें कि अगर गुरु तेग बहादुर इस्लाम कबूल कर लेंगे, तो वे भी कर लेंगे।
* दिल्ली गमन: गुरु जी ने स्वयं दिल्ली जाने का निश्चय किया। औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम अपनाने या कोई चमत्कार दिखाने को कहा।
* दृढ़ता: गुरु तेग बहादुर जी ने इस्लाम कबूल करने से स्पष्ट इनकार कर दिया और धर्म व सत्य के मार्ग पर अडिग रहे। उन्होंने कहा, “सीस कटा सकते हैं, केश नहीं”।
* शहादत: गुरु जी के मना करने पर, 24 नवंबर, 1675 ईस्वी को मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली के चांदनी चौक में सरेआम उनका सिर कलम कर दिया गया। इस शहादत से पहले, उनके तीन भक्तों – भाई सती दास, भाई मति दास, और भाई दयाला जी को भी अत्यंत क्रूरता से शहीद कर दिया गया था।
* स्मृति स्थल: जहाँ उनकी हत्या की गई, वहाँ आज गुरुद्वारा शीश गंज साहिब स्थित है, और जहाँ उनका अंतिम संस्कार किया गया, वहाँ गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब स्थित है।
3. विरासत और महत्व (Legacy and Significance)
* गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान केवल सिख धर्म के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश में धार्मिक स्वतंत्रता और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए दिया गया एक सर्वोच्च त्याग था।
* उन्होंने सिखाया कि किसी को न तो डराना चाहिए और न ही डरना चाहिए।
* उनके बलिदान ने उनके पुत्र, गुरु गोबिंद सिंह जी (दसवें गुरु) को प्रेरित किया, जिन्होंने सिख पंथ को खालसा (संत-सिपाही) के रूप में संगठित किया।
* उनका जीवन हमें सिखाता है कि सत्य, साहस और धर्म की रक्षा के लिए बड़े से बड़ा त्याग भी स्वीकार करना चाहिए।

Nawabihan
Author: Nawabihan

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